लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान लखनऊ (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश) लखनऊ एवं भदंताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान, बालाघाट (म०प्र०) के संयुक्त तत्वावधान में पालि पखवाडा महोत्सव-2024 के अंतर्गत “पालि भाषा-साहित्य एवं बौद्ध पर्यटन के विकास की संभावनाएं” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन, बुद्ध वंदना के साथ किया गया।
इस कार्यक्रम में संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन, निदेशक डॉ० राकेश सिंह, संस्थान के डॉक्टर धीरेंद्र सिंह,अरुणेश मिश्र, श्रीलंका से आये वेन डॉ० जुलाम्पिटिये पुण्यासार महाथेरो, आचार्य राजेश चंद्रा, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ से प्रो० (डॉ०) प्रफुल्ल गड्पाल, प्रो० (डॉ०) गुरुचरन नेगी, संतराम (प्रेमी), गिरिजा शंकर, बुद्धदीप सौरभ, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान की छात्र/छात्राएं तथा बड़ी संख्या में बौद्ध विद्वान, उपासक-उपासिकाएं तथा जन सामान्य ने अपने विचार व्यक्त किए।
संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन ने पालि भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए संगोष्ठी की सफलता के लिए आशीर्वचन दिए।
निदेशक संस्थान डॉक्टर राकेश सिंह ने अपने स्वागत उदबोधन में संस्थान की गतिविधियों पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए संगोष्ठी के उद्देश्य तथा इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बौद्ध दर्शन तथा पालि भाषा-साहित्य के पुनरुद्धार से बौद्ध पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। आपने बताया कि अनगारिक धर्मपाल ने भारत में विलुप्त हो रहे बौद्ध धर्म को पुनः स्थापित करने में महत्पूर्ण योगदान दिया।
वेन डॉ० जुलाम्पिटिये पुण्यासार महाथेरो बताया कि अनगारिक धर्मपाल ने अपना सम्पूर्ण जीवन बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान करने में लगा दिया। आपने बताया कि अनगारिक धर्मपाल जी बौद्ध धर्म के प्रचार–प्रसार के लिए विद्वानों को पत्र लिखा करते थे, उनके द्वारा लिखे गए लगभग 4500 पत्रों का संकलन श्रीलंका में प्रकाशित हुआ है।
प्रो० (डॉ०) प्रफुल्ल गड्पाल ने पालि भाषा के विकास के लिए किये गए सरकार के प्रयासों उल्लेख किया तथा बताया कि पालि भाषा, साहित्य में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
आचार्य राजेश चंद्रा ने बताया कि पालि भाषा सभी भाषाओँ की जननी है तथा इसके विकास के लिए निरंतर प्रयास किये जाने चाहिए।
संस्थान से डॉक्टर धीरेंद्र सिंह ने बताया कि भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बंधित स्थलों, बिहारों, स्तूपों, चैत्यग्रहों तथा बौद्ध मंदिरों को विश्व के मानचित्र पर स्थापित कर पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है जिससे आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भारत को मजबूती प्रदान होगी। अरुणेश मिश्र ने बताया कि बौद्ध संस्कृति में पर्यटन की अपार संभावनाएं है जो पर्यटन के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढाएंगी।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री गुरुचरन नेगी ने बताया कि विभिन्न देशों के साथ पर्यटन के विकास के लिए तीर्थाटन को बढाने के दिशा में भी हर संभव प्रयास करने चाहिए।
अंत में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ से प्रो० (डॉ०) प्रफुल्ल गड्पाल जी ने कार्यक्रम में आए हुए गणमान्य अतिथियों, बौद्ध भिक्षुओं, वक्ताओं, मीडिया कर्मियों, विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया